• 01 June 2020

    शब्द चेतना

    आत्म विकास

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    जीवन या ब्रम्हांड का एक ही मूल मंत्र है विस्तार जो की विकास से ही संभव है । हम जब तक जीवन हैं विकसित होते जाते हैं उत्तरोत्तर , होते ही जाना चाहिए । क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थाई नहीं है । सब कुछ परिवर्तनशील है । हर पल बदल रही है जिंदगी - दिन - समय - ब्रमांड ।
    तो इंसान ने भी खूब विकास किया उत्तरोत्तर आधुनिक होते हुए । इतना कि अंतरिक्ष को भी भेद दिया । मगर यह सब बाह्य विकास के चक्कर में वह अपना आंतरिक विकास भूल गया , बाहरी आपा धापी में ।
    तो जैसा कि कहा गया है शास्त्रों में अति सर्वत्र वर्जयते । और जब भी अति हो जाती है अत्यधिक तो उसे ठीक करने की क्रियाएं भी होने लगती हैं स्वतः ही । बतर्ज क्रिया की प्रतिक्रिया होती है ।
    तो अब जब हमारा अपना बाह्य या भौतिक विकास की और रुझान बढ़ता ही चला जा रहा था । तो ऐसे में कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉक डाउन ने हमें अपने भीतर झांकने का , अपना आंतरिक विकास करने का अवसर दिया कि - ये कहाँ आ गए हम !!!? और - आ अब लौट चलें - - - -- - अपने अनुशासित खान-पान , रहन-सहन की ओर । अपनी अनुशासित जीवन शैली की ओर । हाथ मिलाना छोड़कर नमस्कार करें दूर से । अपने मितव्ययिता के पाठ को दोहराने की ओर । सूझ-बूझ से थोड़े में गुजारा करने की ओर । हर वस्तु का आवश्यकता अनुसार ही उपभोग - प्रयोग करने की और । अनावश्यक - अत्यधिक संग्रहण से बचते हुए ।
    और हमने पाया की इन सबके साथ भी हम अच्छी तरह जी सकते हैं । कई अवांछित वस्तुओं के बेवजह के भार को झाड़ कर हल्के हुए तन - मन से ।



    चेतना भाटी


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निशी मंजवानी - (30 September 2022) 3

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પ્રકાશ પટેલ - (24 January 2021) 5
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