• 04 June 2020

    लाकडाउन

    lockdown drama

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    चार-पांच मजदूर आपस में बातें कर रहे हैं

    पहला मजूदर : आज कितने ही लॉकडाउन खत्म हो गए। तुमने देखा नहीं रोज खबरें आ रही हैं कि श्रमिक मजदूर काफिलों में अपने घरों को लौट रहे हैं?


    दूसरा मजदूर : बात तो तुम्हारी ठीक लगती है लेकिन इतनी दूर पहुंचेंगे कैसे?

    तीसरा मजदूर : पहले तो एक उम्मीद थी कि गाड़ियां और बसें चल पड़ी हैं वे हमें घर तक पहुंचा देंगी। लेकिन अब तो उम्मीद का दीया ही बुझ चुका है।

    चौथा मजदूर : यार उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। सरकार कह रही है तो उसकी बात भी मान लेनी चाहिए।

    पांचवां मजदूर : सरकारों के भरोसे पर ही तो आज यह दिन देखने को नसीब हो रहा है। घर में मेरा तो दादा अकेला ही रहता है। उसको देखने वाला भी कोई नहीं। अगर भूख से दम तोड़ गया तो..? पिछले दिनों बात हुई थी कह रहा था केवल फाके हैं लेकिन खाने को एक समय राशन मिलता है वो भी कई दिनों के बाद।

    पहला मजदूर : जिसे जो करना है करे, मैं तो आज रात को हरियाणा का बार्डर क्रॉस कर जाऊंगा जंगल के रास्ते।

    चौथा मजदूर : उसमें तो बहुत खतरा है। रास्ते में जो जंगल पड़ता है, उसमें पता नहीं कौन सा जानवर मिल जाए? अगर किसी जानवर से सामना हो गया तो घर पहुंचना मुश्किल हो जाएगा।

    पहला मजदूर : तो ठीक है यहां •ाूख से लड़कर मरो। और तो कोई चारा नहीं है। जितने पैसे जेब में थे वो •ाी खत्म हो चुके हैं।

    तीसरा मजदूर : चलो ठीक है, आज रात को ही निकलते हैं। सब लोग अपने-अपने सामान की गठड़ी बांध लो तो आज रात को ही जंगल पार कर जाएंगे।

    चौथा मजदूर : सही कह रहे हो, जंगल पार करते ही यमुना जी आती हैं उसे भी तो पार करना होगा ताकि हम लोग रातोंरात यूपी में पहुंच जाएं। वहां से फिर बिहार तक जाना बहुत ही आसान हो जाएगा।


    दृश्य-2

    सारे मजदूर रात को जंगल पार कर जाते हैं। पौ फटने वाली है और चारों यमुना के किनारे पर खड़े हैं।

    पहला मजदूर : वो देखो वो जो किनारा दिख रहा है नस वहां लगभग दो सौ मीटर तक एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचा जा सकता है।

    दूसरा मजदूर : तुम्हें किसने बताया?

    पहला मजदूर : मैं मिस्त्री हूं, अब इतना तो देखकर बता ही सकता हूं।


    तीसरा मजदूर : खासी पैनी दृष्टि है।

    चौथा मजदूर : खाक पैनी है। अगर पैनी होती तो कई दिन पहले घर से निकल चुके होते लेकिन नहीं कोई मानने के लिए तैयार ही नहीं था। आखिर तो यही स्कीम काम में आई।

    (चारों मजदूर अपनी पैंट पायजामों को घुटने तक ऊपर कर लेते हैं और नदी में उतर जाते हैं।)


    एक मजदूर : वो देखो सांप दिख रहा है।

    दूसरा मजदूर : यहीं रुक जाओ नहीं तो डस लेगा।

    चौथा मजदूर : यार चलते चलो, पानी में सांप डसता नहीं ऐसा मैंने सुन रखा है।

    (सभी एक-दूसरे की तरफ देखते हैं और पानी में फिर से चलने लगते हैं। किसी न किसी तरह वे दूसरे किनारे पर पहुंच जाते हैं। अभी बाहर निकलते ही हैं तो एक पत्रकार सामने मिल जाता है। वह सीधा माइक आगे करता है और पूछता है।)

    पत्रकार : आप जंगल से होकर क्यों आए हैं? क्या आपको डर नहीं लगा?

    एक मजदूर : यह भी कोई पूछने की बात है जंगल में जाएंगे तो डर तो लगेगा ही न।

    पत्रकार : आपको पानी से भी डर नहीं लगा कि आप डूब जाएंगे?

    एक मजदूर : भूख सारे डर भुला देती है। भूख से बड़ा कोई डर नहीं। सारे संयम टूट जाते हैं। इसलिए पानी में डूबने का खतरा तो कम था लेकिन भूख से मरने का खतरा ज्यादा।

    पत्रकार : आप यू.पी. के सहारनपुर शहर में पहुंच गए हैं। आगे क्या प्लान है?

    एक मजदूर : आप हमारा भला चाहते हैं या बुरा?

    पत्रकार : हम पत्रकार हैं हम तो आपकी तस्वीर दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि देखो लोग कैसे लॉकडाउन में मर रहे हैं।

    एक मजदूर : लॉकडाउन में मर रहे हैं या लॉकडाऊन का उल्लंघन कर रहे हैं।

    पत्रकार : मतलब?

    एक मजदूर : मतलब यही कि आप हमारे जख्मों पर मरहम नहीं बल्किनमक छिड़कने आए हैं ताकि यह तस्वीर वायरल हो जाए और पुलिस सावधान ताकि हम लोग यहीं पकड़े जाएं और पुलिस की लाठियों का शिकार हो जाएं। जाइए साहब जाइए, कल से एक कौर भी पेट में नहीं गया है। वरना ऐसे हालातों में किसका मन करता है कि वह सड़कों पर निकल पड़े। यह भी तो मौत से लड़ने वाली बात ही है न?

    (प्रश्नकर्ता पत्रकार उनकी बात सुनकर चुप हो जाता है और अपने कैमरे की आंख दूसरी तरफ घुमा लेता है। और अचानक कहता है...)

    पत्रकार : बात तो आपकी ठीक है। इस गुनाह में हम लोग भी उतने ही गुुनहगार हैं जितने कि आप। अगर हम लोग ऐसी तस्वीरें टी.वी स्क्रीन पर न दिखाते तो हो सकता है कि लोग सड़कों पर न ही उतरते। (वह अपना कैमरा पानी में फैंक देता है और कहता है...) भाड़ में गई ऐसी रिपोर्टिंग।

    (सब लोग उसे हैरानी से देख रहे हैं। रास्ते में चल रहे हैं। दिन चढ़ चुका है। वे लोग चलते ही जा रहे हैं। उन्हें भूख लगती है तो पानी पीकर गुजारा कर रहे हैं।)

    एक मजदूर : यार लगता है कोरोना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता लेकिन भूख हमारे प्राण हर लेगी।

    दूसरा मजदूर : हर लेगी तो हर ले। जो भगवान को मंजूर।

    तीसरा मजदूर : भगवान तो पता नहीं कहां हैं? सारे भगवानों के घरों पर तो बड़े-बड़े ताले जड़ दिए गए हैं।

    चौथा मजदूर : बात तो सही है अगर किसी भी धर्म का कोई भगवान ताला तोड़कर आए और इस महामारी से निजात दिला दे। लेकिन कोई नहीं आने वाला। मुझे तो कहावत याद आ रही है कि सब्र का फल मीठा होता है। गरीबों में यह बात खूब फलती है।

    (कुछ देर सब में सन्नाटा फैल जाता है। अचानक चौथा मजदूर फिर बोल उठता है।)

    चौथा मजदूर : यार समय-समय पर भगवान अवतार लेते हैं। कोई भगवान ही अवतार ले ले और हमारी भूख ही मिटा दे कोरोना की तो बात ही छोड़ो।

    दूसरा मजदूर : जब भगवान अवतार लेगा तो कोरोना भी भगा दे।

    तीसरा मजदूर : यार भगवान हमारा, बाकी धर्मों के लोगों का कोरोना क्यों भगाए?

    चौथा मजदूर : अरे भूख और बीमारी का एक ही भगवान होता है। (कहते-कहते चौथा मजदूर बैठ जाता है। कुछ देर बाद पुन: कहता है।) मेरी तो भूख से जान निकली जा रही है?

    तीसरा मजदूर : अभी तो मंजिल दूर है साथी। पथ कांटो से भरा है। कहीं ऐसा न हो रास्ते में ही मर जाएं। (चौथा मजदूर देखता है और चौंक उठता है।)

    चौथा मजदूर : अरे वो देखो एक जानवर सड़क पर मरा पड़ा है। (कहकर वह फुर्ती से उठता है और जानवर के पास जाकर उसका मांस निकालकर खाना शुरू कर देता है। वह मांस खा रहा है और उसके साथी उसे देख रहे हैं।

    उन्हें में से एक मजदूर कहता है : मैं इस हद तक नहीं गिर सकता कि अपने बावा के दिए हुए संस्कारों को ही भूल जाऊं।

    (तभी पता नहीं एक कैमरे वाला रिपोर्टर कहां से टपक पड़ता है और पूछने लगता है।)

    रिपोर्टर : आप जानवर का मांस खा रहे हैं आपको कैसा लग रहा है?

    एक मजदूर : जी बहुत सुखद। आप भी इसका स्वाद चखकर देखें।

    (रिपोर्टर कुछ शर्मिदा होता है और बिना उससे कुछ पूछे कैमरे की ओर देखकर कहने लगात है।)

    रिपोर्टर : देखिए भूख कैसे इंसान को शैतान बना देती है। सरकार की नीतियां देखिए। जो इस देश को बनाते हैं, सरकार उन्हें दो जून की रोटी तक नहीं दे सकी।

    (गोश्त खा रहा मजदूर रिपोर्टर की तरफ घूर कर देखता है और कहता है।)

    मजूदर : भाग जा साले नहीं तो तुम्हें यहीं काटकर खा जाउंगा। (कहते-कहते वह उठकर उसकी तरफ बढ़ता है। रिपोर्टर डर जाता है और वहां से भागने लगता है और धीरे-धीरे भागते हुए कहता है।)

    रिपोर्टर : देखिए, हैवानियत की पराकाष्ठा देखिए। इंसान को इंसान का दुश्मन बनते तो आपने कई बार देखा-सुना होगा लेकिन यह तो इंसान का लहू पीने तक उतारू हैं। वुहान से भी ज्यादा खतरनाक स्थितियां हमारे देश में पैदा हो गई हैं। जब इंसान इसान को खाएगा तो सोचिए वह किस तरह का वायरस इंसानों को देगा। कैसी महामारी से जूझेगा हमारा देश??? (इतनी बातें कहकर वह भाग जाता है। कैमरा उसके भागने की तरफ मुड़ जाता है।)


    दृश्य-3

    (चार दिन गुजर गए, सब लोग किसी न किसी तरह से अपने-अपने घर को पहुंच जाते हैं। चौथा मजदूर अपने घर का दरवाजा खटखटाता है। बूढ़ा दादा अंदर से आवाज मारता है।)

    दादा : कौन..?

    चौथा मजदूर : मैं हूं, तुम्हारा बिरजू।

    दादा : मेरा बिरजू आ गया। (वह तेजी से उठकर दरवाजा खोल रहा है। चौथा मजदूर: देखते ही कहता है।)

    चौथा मजदूर : बाबा

    दादा : मेरा बिरजू आ गया। शुक्र है भगवान का है। तुमने साबित कर दिया कि तू इस दुनिया में है। मैंने तो तेरे आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। (दोनों घर में दाखिल हो रहे हैं। दादा कहता है।) आज ही कोई कई दिनों के बाद कुछ रोटियां और सब्जी दे गया है। कई दिन हो गए रोटी नहीं खाई। लग रहा था भूख तो जान ही ले लेगी।

    बिरजू : बाबा भूख तो मुझे भी बहुत लगी है। कई दिन हो गए पानी ही भोजन बन गया है। जो मिला जहां से भी मिला खाकर यहां तक पहुंचा हूं। भूख तो मुझे भी जोर से लगी है। चूहे मेरे पेट में भी तांडव मचा रहे हैं। (दादा उसकी तरफ कुछ घूर कर देखता है और कहता है।)

    दादा : पहले मैं खा लेता हूं अगर बच जाएगी तो तू खा लेना।

    बिरजू : नहीं बाबा पहले मैं खा लेता हूं, जो बच जाएगी तुम खा लेना।

    दादा : नहीं अगर मैंने पहले रोटी नहीं खाई तो मैं मर जाऊंगा। यकीन नहीं तो सामने देखो। रोटी खोलकर खाने के लिए बैठा ही था तो तुम्हारी आवाज सुनकर भूखे पेट ही दरवाजा खोलने चला गया।

    बिरजू : तुम्हारी बात तो ठीक है लेकिन रोटी तो पहले मैं खाउंगा। (कहते-कहते वह गुस्से से लाल हो जाता है।)

    दादा : नहीं पहले मैं खाउंगा।

    बिरजू : संस्कार भूल गए बाबा, पहले बच्चे खाते हैं फिर बड़े।

    दादा: ऐसे संस्कारों को क्या करूं जो मेरी जान निकालने पर तुले हुए हैं। (कहते-कहते वह रोटी पर झपटता है। लेकिन जितनी तेजी वह झपटता है, उससे कहीं तेजी से बिरजू उस पर झपटता है। दोनों कह रहे हैं..पहले मैं खाउंगा..पहले मैं खाउंगा।

    लेकिन इसी छीनाझपटी में बिरजू दादा से कहता है।)

    बिरजू : हट जा बाबा, मेरे ऊपर भूख का शैतान मंडराने लगा है।

    दादा : तुम्हारे ऊपर मंडराने लगा है तो मेरे ऊपर भी मंडराने लगा है। इसी रोटी से तुम्हें पाल-पोसकर बड़ा किया है।

    बिरजू : तो क्या उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी?

    दादा : मैंने यह कब कहा?

    बिरजू : तो ठीक है मुझे अभी बड़ा होने दो। पुराने पत्ते झड़ने दो, नये आने दो। तुम पतझड़ हो और मैं वसंत। (दोनों आपस में एक-दूसरे को मारने पर उतारू हो रहे हैं। बिरजू आगे कहता है।) मेरी जिंदगी की तो अभी शुरुआत है। रोटी का शैतान सबसे खतरनाक होता है। (दोनों आपस में गुत्थमगुत्था हो रहे हैं और इसी के चलते बिरजू अपने बाबा का गला घोंट देता है। दादा चित्त होकर जमीन पर पड़ा है।

    और बिरजू वहां पास बैठकर रोटी खा रहा है।)

    डा अजय शर्मा, जालंधर।



    Ajay Sharma


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