29/07/2020 6:51Am #व्यंग्य
घरवालों के आधुनिक धमकियों से डरकर चम्पक लाल ने स्कूल में प्रवेश लिया तो उसके अगले दिन ही मास्टर जी को महसूस हुआ कि उनके कोई पुराने पाप उदित हो चुके हैं।
अब वो शिक्षक और रसोइया के साथ साथ किसी थाने में रखी शिकायत पुस्तिका भी हो चुके थे।
हालाँकि जिस दिन रसोइया की जिम्मेदारी उन्हें मिली उस दिन उन्होंने 11चुनिंदा साथियों को भोज कराते हुए कहा कि-
यार अगर पूर्वांचल से हाईस्कूल-इंटर में अच्छी मार्किंग न आती तो आज का ये भोज आपको न मिल पाता।
तो एक टँगड़ी चूसते साथी ने कहा-यार तुम्हें मास्टर बने 2 साल हो गए, लेकिन यह दावत आज क्यों?
मास्टर जी- यार, पढ़ाई की शादी के लिए और फिर शादी इसलिए नहीं हो रही थी कि लड़का बेरोजगार है
वो तो भला हो सरकार का कि शिक्षमित्रों को मेरिट पर लगवा दिया।
अब हम मास्टर साहब हो गए।
लेकिन हमें पढ़ाना लिखाना नहीं आता ये पूरा क्षेत्र जानता है सो लोग जबरदस्ती abcd 123 की बात शुरू कर देते थे।
अब सरकार ने एक मैडम जी को भेज दिया स्कूल में, वो पढ़ाएंगी और हम शादी के से निखरी अपनी पाक कला का प्रदर्शन करूँगा।
लेकिन यह सुख मास्टर साहब के नसीब में वैसे ही लिखा था जैसे ब्लैकबोर्ड पर चाक से,
क्योंकि स्कूल में चम्पक लाल प्रवेश कर चुके थे।
पाँच कक्षा वाले स्कूल में दो कमरे और दो मास्टर होने के कारण चम्पक लाल अपनी कक्षा में बारे में उतना ही जानते थे जितना मास्टर जी अंतरिक्ष कक्षा के बारे में।
मैडम जी के कुर्सी पर बैठने के अथक अभ्यास के परिणामस्वरूप मैडम जी और चंपकलाल के अतिरिक्त कक्षा अनुसार बच्चे आते जाते रहते थे और इस तरह तीन साल की धक्कामुक्की और लोगों के मिलेजुले प्रयास से अपना नाम नाम लिखने के साथ साथ अक्षर पहचानने की शक्ति प्राप्त कर ली।
इससे ज्यादा पढ़ने और सीखने का दबाब उन्हें शोषण लगने लगा सो विद्रोह करते हुए उन्होंने गाँव छोड़ दिया।
गाँव के आवारा और नालायकों में शामिल चंपकलाल को अब लोग उसी तरह से याद करते थे जैसे घर के खूँटे पर बंधा मरखना बछड़ा बिकने या भाग जाने के बाद याद किया जाता है।
धीरे धीरे मास्टर जी जिंदगी की टेंशन से पेंशन लेने की उमर में पहुँच चुके थे और मैडम जी शादी करके स्कूल में पढ़ाने के साथ साथ यूट्यूब पर स्वेटर की नई डिजाइनें सिखते हुए गाँव के भविष्य को सँवारने का जिम्मा निभा रही थीं।
अचानक एक दिन गाँव में आकर पुलिस ने बताया कि अगले हफ्ते गाँव में नेता जी स्कूल के लिए नई बिल्डिंग की घोषणा करने आने वाले हैं।
उस जमाने में नेता और भगवान में केवल इतना अंतर होता था कि भगवान प्रकट नहीं होते थे।
बाकी सम्मान दोनों का एक बराबर होता था सो गाँव वाले आवभगत की तैयारी में लग गए।
चूँकि आवभगत की व्यवस्था गाँव वाले करते थे तो व्यवस्था के लिए आये फण्ड को बराबर हिस्सों में बाँटते हुए नेता जी और प्रबन्ध समिति ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया।
नियत दिन पर नियत समय से तीन घण्टे लेट होकर अम्बेसडर में गाँव पहुँचे चंपकलाल को अपने सारे कारनामे गाँव में घुसते ही दिमाग की कैसेट में दिख गये।
जैसे ही चंपकलाल माइक पकड़ने के लिए मंच पर प्रकट हुए, लोगों में कानाफूसी होने लगी,
यार यह तो बिरजू का लड़का चम्पकुआ है।
हाँ, मै चम्पक ही हूँ।
इसी गाँव का चम्पक हूँ।
कुछ बड़ा करने की जिद में मैं यहाँ नहीं रुका और वही बड़ा करने आज आया हूँ।
पेंशन पर पल रहे मास्टर जी ने जब यह सुना तो सीना 56इंच का हो गया।
डंडा पकड़कर मंच पर चढ़े और चम्पक की पीठ ठोंकने लगे।
बेटा- तुमने गाँव का नाम रोशन कर दिया।
नेता चम्पक जी ने स्कूल के नए भवन का फीता काटा,सबने ताली बजाई।
नेता जी चले गए।
आज दो महीने बाद भवन बनकर तैयार हो चुका है।
लेकिन उसमें पढ़ाई नहीं होती बल्कि प्रधान जी का भूसा भरा है, बरामदे में गाय बंधी है।
मगर पढ़ाई क्यों नहीं होती?
क्योंकि गाँव की सब नई पीढ़ी चम्पक से मिलने के बाद सफलता का अर्थ समझ चुकी है।
जो सक्षम नहीं हैं वे मजदूरी करते हैं शाम को अद्धा पौआ खरीदने के लिए
और जो सक्षम हैं वो चम्पक लाल बनने शहर चले गए।