ऋचा दीपक कर्पे - (18 March 2024)बहुत ही प्रवाही और प्रभावी लेखन! पूर्णतः सहमत हूँ आपके विचारों से, 'भारत में तो ऐसा ही होता आया है' कतई सही है और आपने इतिहास की जिन चुनिंदा सशक्त महिलाओं का संदर्भ दिया वे तो प्रसिद्ध थीं लेकिन इनके अलावा भी हमारे इतिहास का आकाश ऐसी अनगिनत उल्काओं से आलोकित हैं जिनका नाम तक हमें स्मरण नहीं। निश्चित ही भारतवर्ष की महिलाएँ सशक्त थीं, हैं और रहेंगी।
Kiran Kumar Pandey - (08 March 2024)एक महान दिन के अवसर पर आपसे इसी तरह के लेख की उम्मीद थी ! तीन बातों में मैं अपनी बात पूरी करना चाहूंगा.. पहली यह कि, हम सभी लोगों को इतिहास की किताबें जो यथार्थ हों पढ़नी चाहिए और अपने दिमाग के बंद कपाट खोलने चाहिए ! दूसरी यह कि, बिना बिचारे न तो कुछ बोलना चाहिए और न ही कुछ करना चाहिए और तीसरा यह कि, मातृभूमि, मातृभाषा और मातृत्व को अपनी जान से भी बढ़कर मानना चाहिए और इनके सम्मान पर किसी प्रकार की आंच नहीं आने देना चाहिए ! धन्यवाद !